तो शायद मैं आज ऐसा ना होता

 मैंने खुद को खुद से नज़रे चुराते देखा है

खुद को खुद से नाराज़ होते देखा है

तन्हाई में खुद को रोते देखा है

लोगों को धोखा देते देखा है

और अपनों से धोखा खाकर देखा है

 दूसरों को पाने कि चाह में

मैंने खुद को खोकर देखा है

रोया मै भी बहुत हूं तन्हाई में

 भरी महफ़िल में दूसरों के सामने खुद को मुस्कुराते देखा है

तन्हाई मुझे बहुत पसंद हैं

ऐसा कहकर तन्हाई में खुद को रोते बहुत देखा है

रोने मे सच मे बहुत मज़ा आता है

खुद को खुद से मिलने क मौका मिल जाता है

प्यार ऐसा ही होता तो कितना अच्छा होता

ना कोई किसी को धोखा देता

ना कोई किसी के लिए रोता

ना कोई दुखी होता

और जैसा मैं आज हूं

तो शायद मैं आज ऐसा ना होता

होती कुछ कमी....... पर ना बर्बाद मैं होता....

तो शायद मैं आज ऐसा ना होता

होता मैं कुछ अलग पर..... ना इतना गलत ना होता......





BY:-MOHIT K SINGH






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