कुछ अधूरे शब्द
बातों से तो तुम्हारी भी कुछ ज़ाहिर सा है
कुछ तो है दिल मे ...जो जुवां पर चुप सा है
या मुझे ही कुछ कम समझ आया है
या फिर शायद तुमने अपने भी शब्दो मे व्याज लगाया है
तुमने भी शायद शब्दो मे जाल बुनना अपने सीख लिया है
शायद लोगों को शब्दो मे जकड़ना तुमने भी सीख लिया है
ऐसे ही शायद तुमने अपने शब्दों मे व्याज लगाया है
मुझसे अब बहुत कम बातें होती है
और जो होती है बस मतलब की होती है
दिल की बातें अब शायदऔर कहीं वयां होती है
या शायद मेरे लिए ही तो ये व्याज नहीं??
बातों मे अब बस मतलब नज़र सा आता है
क्या ये भी उसी व्याज का एक हिस्सा है??
क्या ये व्याज सच मे तुमने अपने मन से लगाया है??
खुद से ये सवाल मैं आजकल रोज करता हूं
क्या मुझे भी ये हुनर सीखना चाहिए??
या फिर मैं ऐसे ही सही हूं??
BY:-MOHIT K SINGH
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