खुदा की मेहरबानी

 



के तन्हाई मे बैठकर मैं रोया भी बहुत हूँ.. 

और रोशनी मे मुस्कुराया भी बहुत हूँ 

के तन्हाई मे बैठकर मैं रोया भी बहुत हूँ.. 

और रोशनी मे मुस्कुराया भी बहुत हूँ 

लोग तो आज दूसरों की बेवफ़ाई से परेशान है.....

और एक मैं हूँ जो खुद-ही-खुद को चोट लगाकर बैठा हूँ.. 

माना अब तन्हाई ही बची है मेरी ज़िन्दगी मे ...

माना अब तन्हाई ही बची है मेरी ज़िन्दगी मे ...

लेकिन उसे पाने की एक आस तो बाकी है....

माना उसे खो चुका हूँ मैं.....

पर उसे पाने की एक चाह तो बाकी है.... 

इसे में कैसे खोदू ...जो मेरे जीने  की एक आखरी सीडी बाकी है ......

दिल करता है उसे ये जान भी देदू......फ़िर सोचता हूँ.. 

क्या ये ख्वाहिश भी उसी खुदा की मेहरबानी है......



BY:-MOHIT K SINGH

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